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कुवैत में रोजी -रोटी के लिए गए भारतीयों की दर्दनाक मौत , परिजनों की दर्द भरी दास्ताँ

परदेस में रोजी-रोटी की तलाश, अब लौट रही उनकी लाश! कुवैत में मारे गए भारतीयों के परिजनों का दर्द छलनी कर देगा सीना

कुवैत के मंगाफ में सोते वक्त इमारत में आग लगने से 45 भारतीयों समेत 49 लोगों की मौत हो गई। इस हादसे में जिन लोगों ने अपनों को खोया है, वे सदमे में है। उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट चुका है।

नई दिल्ली : रोजी-रोटी की तलाश में वे परदेस गए थे। कोई परिवार के अच्छे भविष्य के लिए अपना देश छोड़ परदेस गया था तो कोई सिर के ऊपर एक अच्छी सी छत के सपने को पूरा करने के लिए अपनों से दूर होना चुना था। कोई 2 महीने बाद वतन लौटने और सपनों के घर की नींव रखने वाला था। किसी के रिश्ते की बात चल रही थी। किसी ने पिछले हफ्ते ही अपनी पहली सैलरी भेजी थी। कोई बमुश्किल एक हफ्ते पहले ही अपनी पहली नौकरी पर कुवैत पहुंचा था। घर में खुशियां थीं। तब शायद आस-पड़ोस में मिठाइयां भी बंटी होंगी। लेकिन वे अब नहीं लौटेंगे। अब उनकी लाश लौट रही हैं। उनके घरों में अब मातम है। इंडियन एयर फोर्स के एक विमान से कुवैत अग्निकांड में मारे गए भारतीयों के शवों को कोच्चि लाया जा चुका है। मरने वालों में ज्यादातर केरल के रहने वाले थे। इंग्लिश न्यूज वेबसाइट ‘न्यूज18’ ने कुवैत अग्निकांड में मारे गए भारतीयों के कुछ परिजनों और दोस्तों से बातचीत कर एक रिपोर्ट छापी है। हादसे में अपनों को खोने वालों के दर्द, मलाल और आंसू दिल चीर देने वाले हैं।

सपनों के घर की नींव रखने वाले थे शमीर लेकिन…

केरल के कोल्लम जिले के रहने वाले उमरुद्दीन शमीर कुवैत के मंगाफ में एक इमारत में लगी आग में मारे गए 45 भारतीयों में से एक थे। वह 2 महीने बाद कोल्लम लौटने वाले थे। अपने सपनों के घर की नींव रखने वाले थे। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। 33 साल के शमीर करीब पांच साल से कुवैत स्थित कंपनी एनबीटीसी में ड्राइवर के तौर पर काम कर रहे थे। ऐसा संदेह है कि घबराहट में और अपनी जान बचाने की कोशिश में शमीर ने इमारत से कूदने की कोशिश की, जिससे उसकी मौत हो गई।

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