आइये जानते है कि बेंजामिन फ्रैंकलिन कौन है ,और उनकी बाते आज भी भारतीय अदालतों में क्यों गूंजती है .-अमेरिका के बोस्टन में अप्पने माता -पिता के 17 बच्चो में से 10 वा संतान थे .उनके पिता उस वक्त साबुन और मोमबतिया बेचा करते थे .फ्रैंकलिन ने ही क्रन्तिकारी युद्ध को समाप्त करने वाली पेरिस की 1783 की संधि को तैयार करने में अहम् भूमिका निभाई थी .उन्होंने ही अमेरिका के मानवाधिकारो की अहमियत देते हुए संविधान तैयार किया . आदमी अपने जीवन में क्या क्या हो सकता है? आप यकीन करें या न करें, मगर अमेरिका के फाउंडर बेंजामिन फ्रैंकलिन को अमेरिकी प्रिंटर, पब्लिशर, लेखक, आविष्कारक, वैज्ञानिक और कूटनीतिज्ञ कहा जाता है। एक ऐसा शख्स जो अमेरिका की नींव रखने वाले फाउंडिंग फादर्स में से एक था। जिसने अमेरिकी क्रांति के दौरान फ्रांस में अमेरिका का प्रतिनिधित्व किया था। एक ऐसी हस्ती, जिसने अमेरिका की आजादी के घोषणापत्र पर दस्तखत किए थे। यही नहीं उसने अमेरिकी लोगों के लिए ऐसा संविधान लिखा, जो आज भी भारत समेत पूरी दुनिया के लिए नजीर है। हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत देते हुए जज न्याय बिंदु ने अमेरिका के संस्थापकों में से एक बेंजामिन फ्रैंकलिन का जिक्र किया।
कहां से आया 100 गुनहगार बनाम 1 निदोर्ष का सिद्धांत-
आपराधिक कानूनों में ब्लैकस्टोन रेश्यो थ्योरी चलती है। फ्रैंकलिन से भी पहले इंग्लैंड के एक जज और ज्यूरिस्ट विलियम ब्लैकस्टोन ने यह सिद्धांत दिया था कि भले ही 10 दोषी छूट जाएं, मगर 1 भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। कुछ समय बाद ही फ्रैंकलिन ने पहले के 10 के बजाय इस कथन को 100 कर दिया। उन्होंने कहा-भले ही 100 गुनहगार छूट जाएं, मगर कोई बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए। इसी के आधार पर तब बोस्टन में नरसंहार करने वाले ब्रिटिश सैनिक सजा पाने से बच गए थे। 18वीं सदी के आखिरी दशकों में उस वक्त यह सिद्धांत काफी चर्चा में रहा था। यह सिद्धांत अब 21वीं सदी में अदालतों में अक्सर नजीर बनकर सामने आती है। भारत में भी इसी को अपनाया गया है।