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आपातकाल के 50 साल होने पर इमरजेंसी से पहले के चंद घंटो पहले क्या हुआ था उस रात ,आइये जानते है ; आपातकाल के साजिश में ओ आठ लोग कौन -कौन थे इंदिरा गाँधी के साथ

emergency in india आपातकाल के 50 साल होने पर इमरजेंसी से पहले के चंद घटों पहले की कहानी के बारे में बात करेंगे, जब इसकी रूपरेखा बुनी गई थी। इमरजेंसी के वो किरदार कौन थे, जिन्होंने आपातकाल लागू करने में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मदद की थी और कैसे लिखा गया था इसका मसौदा, इस बारे में भी जानेंगे।

नई दिल्ली: 25 जून, 1975 की आधी रात से करीब 4 घंटे पहले अपने दफ्तर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तेजी से चहलकदमी कर रही थीं। उनके साथ दफ्तर में विश्वासपात्र और सबसे भरोसेमंद माने जाने वाले पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे भी थे। देश में आपातकाल कैसे लगेगा और किस तरह से इसका अमलीजामा पहनाया जाएगा, किन-किन लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा और प्रेस पर सेंसरशिप कैसे लगेगी, इस बारे में पूरा ब्योरा बनाया जा रहा था। विदेशी खुफिया मिशन को अंजाम देने वाले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ के अफसर यह लिस्ट बनाने में लगे थे कि किसे गिरफ्तार करना है और किसे नहीं। यह लिस्ट इंदिरा गांधी को दिखाई गई। जब इमरजेंसी का मसौदा तैयार हो गया तो इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे से राष्ट्रपति भवन चलने को कहा।

आपातकाल के इरादे की झलक 5 दिन पहले ही दिखी

इमरजेंसी में जेल जाने वाले मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने किताब लिखी-इमरजेंसी रीटोल्ड, जिसका हिंदी संस्करण आया-इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी। इसके उन्होंने लिखा है कि 20 जून को इंदिरा गांधी ने एक रैली की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो अंतिम सांस तक जनता की सेवा करती रहेंगी, चाहे वे किसी भी पद पर हों। उन्होंने कहा कि सेवा करना ही उनके परिवार की परंपरा रही है। पहली बार किसी सार्वजनिक सभा में इंदिरा ने अपने परिवार की चर्चा की। उनका परिवार भी उस मंच पर मौजूद था-संजय, राजीव और उनकी इतालवी पत्नी सोनिया। उन्होंने कहा कि बड़ी ताकतें न केवल मुझे सत्ता से बेदखल करने पर तुली हैं, बल्कि मेरा जीवन भी समाप्त कर देना चाहती हैं। अपने इरादे को अंजाम देने के लिए उन्होंने एक बड़ा जाल फैला रखा है।

इंदिरा के विश्वासपात्र ने सुझाया इमरजेंसी का आइडिया

इंदिरा के बेहद विश्वासपात्र और बचपन के साथी रहे सिद्धार्थ शंकर रे को तत्कालीन कलकत्ता से बुलाया गया। 24 जून को बातचीत के दौरान सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा से देश में आपातकाल लगाने की सलाह दी। पीएम आवास से फौरन किसी को संसद की लाइब्रेरी से संविधान की एक कॉपी लाने को भेजा गया। प्रधानमंत्री के सचिवालय ने इमरजेंसी लगाने के लिए एक नोट पहले ही तैयार कर लिया था। आपातकालीन शक्तियों के तहत केंद्र किसी भी राज्य को कोई निर्देश दे सकता था।

क्या सिद्धार्थ शंकर रे थे आपातकाल के मास्टरमाइंड

संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 को या सारे मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकता था। अदालतों को यह आदेश दिया जा सकता था कि वो इन अधिकारों को लागू करने संबंधी किसी की भी अपील स्वीकार न करें। सिद्धार्थ शंकर रे को ही इमरजेंसी का मास्टरमाइंड कहा जाता है। हालांकि, कुछ लेखक कहते हैं कि यह खुद इंदिरा के ही दिमाग की उपज थी। आखिरकार इमरजेंसी का फैसला अब ले लिया गया।

सिद्धार्थ शंकर रे ने टाइप करवाया इमरजेंसी का मसौदा

रे ने इंदिरा के सचिव पीएन धर को आपातकाल की घोषणा के बारे में बताया। धर ने अपने टाइपिस्ट को बुला कर आपातकाल की घोषणा के प्रस्ताव को लिखवाया। बाद में इन सारे कागजात के साथ आर के धवन राष्ट्रपति भवन पहुंचे। इमरजेंसी लागू होने के तीन घंटे बाद इंदिरा सोने गईं तो देशभर में गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। सबसे पहले जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई को हिरासत में लिया गया।

इतनी गोपनीयता बरती गई कि कानूनी मंत्री को भी नहीं बताया

इमरजेंसी लगाने के मामले में गोपनीयता का खास ख्याल रखा गया था। यहां तक कि जब इसे कानूनी रूप देने के लिए तत्कालीन कानून मंत्री एचआर गोखले को बुलाया गया। तब उस वक्त भी इमरजेंसी कब लागू होगी, इसकी तारीख उन्हें भी मालूम नहीं थी। इमरजेंसी कब लगेगी, इसकी जानकारी इंदिरा गांधी, आरके धवन, बंसीलाल, ओम मेहता, किशन चंद और सिद्धार्थ शंकर रे को ही थी। इसके अलावा इंदिरा के बेटे संजय गांधी और उनके निजी सचिव पीएन धर को भी इसकी जानकारी बाद में दी गई।

अपने मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से सीधे संपर्क नहीं करती थीं इंदिरा

किताब ‘Leaders, Politicians, Citizens: Fifty Figures Who Influenced India’s Politics’ के लेखक रशीद किदवई बताते हैं कि इंदिरा गांधी अपने मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और पार्टी प्रमुखों से सीधे संपर्क नहीं रखती थीं। उन तक जो भी निर्देश पहुंचाने होने थे या उन्हें अच्छी या बुरी ख़बर सुनानी होती थी, वो आरके धवन के ज़रिए पहुंचाई जाती थीं। इसका मकसद यह था कि अगर कुछ ठीक नहीं हुआ तो इसकी ज़िम्मेदारी धवन को ही उठानी पड़ेगी।

आपातकाल लगाने के पीछे ये थीं बड़ी वजहें

सीनियर जर्नलिस्ट और किताब ‘द इमरजेंसी’ की लेखिका कूमी कपूर कहती हैं कि आपातकाल की योजना एक रात में नहीं बनी थी। आपातकाल की पृष्ठभूमि तो पहले से ही तैयार होने लगी थी। देशभर के युवा महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के चरम पर पहुंचने से बेहद गुस्से में थे। छात्र और युवा 72 साल के बुजुर्ग समाजवादी-सर्वोदयी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पीछे अहिंसक और अनुशासित तरीके से लामबंद होने लगे थे। देश भर में कांग्रेस सरकारों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे। ऐसे में 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा का ऐतिहासिक फैसला आया। रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को समाजवादी नेता राजनारायण ने यह कहकर चुनौती दी थी कि इंदिरा ने चुनाव के प्रचार के दौरान गलत तरीके अपनाए थे। जज ने इंदिरा के संसदीय चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द करने के साथ ही उन्हें छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी घोषित कर दिया। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की छूट दे दी थी।

इमरजेंसी से 4 घंटे पहले राष्ट्रपति भवन पहुंचीं इंदिरा

कुलदीप नैयर की किताब के अनुसार, इमरजेंसी लागू होने के तय समय से चार घंटे पहले इंदिरा गांधी अपने सहयोगी सिद्धार्थ शंकर रे के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचीं। वहां सिद्धार्थ ने राष्ट्रपति को समझाने में 45 मिनट लगाए कि इमरजेंसी का मतलब क्या कुछ होगा। राष्ट्रपति को भी इमरजेंसी के नतीजों को समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने विरोध भी नहीं जताया। देश के सर्वोच्च पद पर बिठाए जाने के लिए वो इंदिरा गांधी के कर्जदार थे। राष्ट्रपति ने रात 11:45 बजे इमरजेंसी लागू करने की घोषणा पर दस्तखत कर दिए।

जब जेपी ने हंसते हुए दिया था जवाब

कूमी कपूर ने अपनी क़िताब ‘इमरजेंसी:ए पर्सनल हिस्ट्री’ में लिखा है अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से लौटे और राज्य सभा में जनसंघ की तरफ़ से जाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने जेपी से पूछा था अगर इंदिरा अमेरिका की तरह मार्शल लॉ लगा देंगी तो क्या होगी, तो जेपी ने उनके डर को हंसते हुए ये कह कर खारिज कर दिया था कि तुम काफ़ी अमेरिकी हो चुके हो… जनता इंदिरा के खिलाफ विद्रोह कर देगी।

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