अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल डोनाल्ड ट्रम्प पर पेंसिल्वेनिया में एक रैली के दौरान गोली चली। साफतौर पर हत्या के प्रयास में ट्रंप बाल-बल बच गए। इसको लेकर इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने ट्रंप के बचने का श्रेय भगवान को दिया। उन्होंने 1976 में न्यूयॉर्क में इस्कॉन की पहली रथयात्रा को भी याद किया।
अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे उम्मीदवार को पेनसिल्वेनिया में एक चुनावी रैली के दौरान कातिलाना हमला किया गया .गोली ट्रंप के कण के पास से गुजर गयी . हमले में ट्रंप बल -बाल बचे । इस हमले में बचने को लेकर इस्कॉन ने रविवार को डोनाल्ड ट्रंप के न्यूयॉर्क में लगभग आधी सदी पहले की पहली रथयात्रा से जोड़ रहे हैं। इस्कॉन कोलकाता के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने इसे दैवीय हस्तक्षेप बताया है।
मुफ्त में उपलब्ध कराया था ट्रेन यार्ड
दास ने कहा कि जुलाई 1976 में डोनाल्ड ट्रंप ने इस्कॉन के उन भक्तों की मदद की थी जो रथ निर्माण के लिए बड़ी जगह की तलाश कर रहे थे। उन्होंने अपना ट्रेन यार्ड मुफ्त में उपलब्ध कराया था। उन्होंने कहा कि आज रथयात्रा उत्सव के दौरान भगवान जगन्नाथ ने भी इस उपकार को चुकाने की बारी थी। उस समय उभरते रियल एस्टेट मुगल ट्रंप की सहायता से 1976 में न्यूयॉर्क के पांचवें एवेन्यू पर भगवान जगन्नाथ की पहली रथ यात्रा संभव हो पाई थी।
रथ निर्माण के लिए चाहिए थी जगह
दास ने कहा कि न्यूयॉर्क में 5th एवेन्यू के पास एक विशाल खाली जगह ढूंढना, जहां रथों का निर्माण किया जा सके, कभी भी आसान नहीं था। इस्कॉन के भक्त, जो न्यूयॉर्क में एक भव्य रथयात्रा के साथ संगठन के 10वें उत्सव को एक बड़े जोरशोर के साथ मनाने की योजना बना रहे थे, उन्होंने हर संभव व्यक्ति के दरवाजे खटखटाए, लेकिन सब व्यर्थ रहा। कुछ दिनों बाद, इस्कॉन के भक्तों को पता चला कि डोनाल्ड ट्रम्प ने पुराने रेलवे यार्ड को खरीद लिया है।
…तब किसी को नहीं थी हां की उम्मीद
उस समय भक्त महाप्रसाद की एक बड़ी टोकरी और एक प्रेजेंटेशन पैकेज लेकर उनके ऑफिस गए। उनके सचिव ने इसे ले लिया लेकिन चेतावनी दी कि वह इस तरह की चीजों के लिए कभी सहमत नहीं होते। आप पूछ सकते हैं लेकिन वह ‘नहीं’ कहने वाले हैं।” तीन दिन बाद, ट्रम्प के सचिव ने भक्तों को फोन करके कहा: मुझे नहीं पता कि क्या हुआ लेकिन उन्होंने आपका पत्र पढ़ा, आपके द्वारा छोड़ा गया भोजन थोड़ा सा लिया और तुरंत कहा, ‘जरूर, क्यों नहीं?’