देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर को शायद ही पसंद करते थे। वजह यह है कि कांग्रेस ने आंबेडकर को संविधान सभा में जगह तक नहीं दी थी। इस कारण नेहरू ने आंबेडकर को दो बार कांग्रेस प्रत्याशी के हाथों चुनाव हरवाया था। इससे पहले नेहरू की अंतरिम सरकार के दौरान आंबेडकर को इस्तीफा तक देना पड़ा गया था। आज उन्हीं आंबेडकर को कांग्रेस गले लगा रही है। बीजेपी भी उनका फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। इसे समझते हैं।
14 नवंबर, 1956 की बात है, जब नेपाल की राजधानी काठमांडू में विश्व धर्म संसद की शुरुआत हो रही थी। इस सम्मेलन का उद्घाटन तत्कालीन नेपाल के राजा महेंद्र ने किया था। नेपाल के राजा ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर से मंच पर अपने पास बैठने को कहा था। यह देख दुनिया को यह अंदाजा हो गया था कि बौद्ध धर्म में बाबा साहेब का पद काफी बड़ा था।
भीमराव आंबेडकर की पत्नी सविता आंबेडकर ने अपनी जीवनी ‘डॉ. आंबेडकरांच्या सहवासात’ में इस बारे में लिखा है। भारज लौटते वक्त बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म के तीर्थस्थलों का दौरा किया। वो 30 नवंबर को दिल्ली लौटे, जहां संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका था। उस वक्त खराब सेहत के बाद भी आंबेडकर 4 दिसंबर को संसद पहुंचे और राज्यसभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया। यह बाबा साहेब का संसद का आखिरी दौरा था। इसके बाद 6 दिसंबर, 1956 को आंबेडकर का निधन हो गया।
आइए जानते हैं आंबेडकर के नेहरू से रिश्तों की कहानी। इन्हीं आंबेडकर को लेकर अब कांग्रेस और बीजेपी में ठन गई है। यह भी जानेंगे कि कांग्रेस और बीजेपी अब आंबेडकर को क्यों गले लगाने पर उतारू हो रही हैं।
साल 1952 में आंबेडकर उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से लड़े हालांकि, कांग्रेस ने आंबेडकर के ही पूर्व सहयोगी एनएस काजोलकर को टिकट दिया और आंबेडकर चुनाव हार गए। कांग्रेस ने कहा कि आंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे इसलिए उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। उस वक्त नेहरू दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और आखिर में आंबेडकर 15 हजार वोटों से चुनाव हार गए। आंबेडकर को 1954 में कांग्रेस ने बंडारा लोकसभा उपचुनाव में एक बार फिर हराया। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू कभी आंबेडकर पर भरोसा नहीं करते थे और वह कभी उन्हें पसंद नहीं करते थे। आंबेडकर की समाज सुधारक की छवि से टेंशन में थी कांग्रेस।
आंबेडकर की समाज सुधारक वाली छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी। यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई। संविधान सभा में भेजे गए शुरुआती 296 सदस्यों में आंबेडकर नहीं थे। आंबेडकर सदस्य बनने के लिए बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ का साथ भी नहीं ले पाए। उस समय के बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने पटेल के कहने पर सुनिश्चित किया कि आंबेडकर 296 सदस्यीय निकाय के लिए न चुने जाएं।
आंबेडकर जब बॉम्बे में असफल रहे तो उनकी मदद को बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए। उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया। यही मंडल बाद में पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने।
जिन जिलों के वोटों से आंबेडकर संविधान सभा में पहुंचे थे वो हिंदु बहुल होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गए। नतीजतन आंबेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए। भारतीय संविधान सभा की उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। पाकिस्तान बनने के बाद भारत में रहे बंगाल के हिस्सों में से दोबारा संविधान सभा के चुनाव हुआ।
जब कहीं से उम्मीद नहीं बची तो आंबेडकर ने धमकी दी कि वो संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। माना जाता है कि इसके बाद ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें जगह देने का फैसला किया। इसी दौरान बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा में अपने पद से इस्तीफा दे दिया, तब कांग्रेस ने फैसला किया कि एमआर जयकर की खाली जगह आंबेडकर दे दिया जाय।
आजादी से पहले जब जवाहरलाल के नेतृत्व में पहली अंतरिम सरकार बनी थी तो आंबेडकर नेहरू कैबिनेट में कानून मंत्री थे। हालांकि, अनुसूचित जातियों और हिंदू कोड बिल को लेकर आंबेडकर कांग्रेस की नीतियों से निराश थे। 11 अप्रैल, 1947 को आंबेडकर ने हिंदू कोड विधेयक, 1947 को सदन में पेश किया था लेकिन बिना किसी चर्चा के गिर गया। आंबेडकर ने कहा कि प्रधानमंत्री के आश्वासन के बावजूद हिंदू कोड बिल संसद में गिरा दिया गया। इन्हीं मतभेदों के चलते आंबेडकर को 27 सितंबर, 1951 को अंतरिम सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक संगठन बनाया और बहिष्कृत हितकारिणी सभा की शुरुआत की।
अंबेडकर ने साल 1924 में इंग्लैंड से वापस आने के बाद वकालत और दलितों के उत्थान के लिए काम करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने एक असोसिएशन बहिष्कृत हितकारिणी सभा की शुरुआत की , जिसके अध्यक्ष सर चिमनलाल सीतलवाड़ थे और चेयरमैन बीआर आंबेडकर थे।बीजेपी अब आंबेडकर के प्रति इतनी उदार क्यों हो गई
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, इस साल लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में आंबेडकर को लेकर यात्राएं करने की बात कही थी। खुद पीएम नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि संविधान हमारे लिए गीता, बाइबिल, कुरान और सब कुछ है। संविधान को कोई नहीं बदल सकता। बाबा साहेब आ भी जाएं तो अब संविधान नहीं बदला जा सकता। उनसे पहले कई मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी आंबेडकर के समता के सिद्धांतों की तारीफ कर चुके हैं। बीजेपी के हालिया झुकावों की वजह चुनाव हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ये नरैटिव सेट करने में कामयाब हो गया था कि भाजपा के 400 पार के नारे का मतलब है कि वह सत्ता में बहुमत के साथ आई तो संविधान संशोधन करेगी और दलितों का आरक्षण खत्म कर देगी। नतीजा यह रहा कि बीजेपी बहुमत से दूर हो गई। यूपी में तो बेहद खराब प्रदर्शन रहा। यही वजह है कि पार्टी ने हरियाणा में दलित वोटरों को साधा और अप्रत्याशित जीत हासिल की।
आंबेडकर आज के दौर में हर पार्टी के चहेते बन गए हैं। इसकी बड़ी वजह दलित वोटर और दलित राजनीति है। हर किसी को दलितों का वोट चाहिए। आजादी के बाद से ही दलित राजनीति इसीलिए सबको लुभाती रही है। हर चुनाव में दलित वोटों का गणित बेहद मायने रखता है।
नेहरू के बजाय आंबेडकर कैसे बन गए कांग्रेस के हीरो।
डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में दलित वोटों की राजनीति का फायदा कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को मिला था। उस वक्त विपक्ष ने आरक्षण पर मोदी सरकार को घेरकर 272 के बहुमत से काफी पीछे यानी बीजेपी को 32 सीटें दूर कर दिया था। हाल के बरसों में जब से बसपा और मायावती की राजनीति फीकी पड़ी है, तब से कांग्रेस दलित वोटरों को रिझाने में लगी है। यही वजह है कि राहुल गांधी अकसर संविधान, आरक्षण और आंबेडकर की बात करते नजर आते हैं। कांग्रेस नेतृत्व चुनावों में नेहरू की बात न के बराबर करता है, जबकि आंबेडकर की बातें ज्यादा होती है।
अमित शाह के इस्तीफे को लेकर बीजेपी-कांग्रेस में छिड़ गई जंग।संसद में केद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संविधान पर चर्चा के दौरान बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर पर दिए एक बयान को लेकर विपक्ष लामबंद हो गया है। ऐसा हंगामा हुआ कि संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी और पूरा विपक्ष सड़कों पर आ गया है। वहीं, इस मामले में घिरे अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, जिन्होंने जीवन भर बाबा साहेब का अपमान किया, उनके सिद्धांतों को दरकिनार किया, सत्ता में रहते हुए बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया, आरक्षण के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाईं, वे लोग आज बाबा साहेब के नाम पर भ्रांति फैलाना चाहते हैं। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह पर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाते हुए उनका इस्तीफा मांग लिया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सभी ब्लू कलर के कपड़े में विरोध करने पहुंच गए।